नवेन्दू अभि किशोर ही था, जब उसके पिता ने दोबारा शादी की। सौतेली माँ ने, नवेन्दू की आँखों में भय और शंका देखी, तो उसने नवेनदू को आश्वासन दीया, कि वो उसे अपना ही पुत्र समझेगी। कुछ ही वर्षों के बाद, मरते समय, पिता ने नवेन्दू से वचन लिया कि वो अपने सौतेले भाई, बहन और माँ की अैसे ही देख भाल करे, जैसे वो उसके सगे हों।
नवेन्दू ने वचन निभाया - भाई बहन नवेन्दू को पिता समान समझते हुअे बड़े हो गये। जल्दी ही वो दिन भी आया जब भाई - बहन जीवन के उस दोराहे पर आ कर खड़े हो गये, जहाँ से उन्हें स्वार्थ और त्याग का मार्ग चुनना था।
"दो रास्ते" की कहानी उन्हीं भाई - बहनों की कहानी है, जो अलग अलग रास्ते अपनाते हैं। ये उनके उत्यान और पतन, प्रेम और घृणा की कहानी है। इस में एक बेटे की नफ़रत और माँ के कोमल स्नेह के दर्शन होते हैं। एक अमीर लड़की एक गरीब लड़के से प्रेम करती है, तो ग़रीब लड़का दौलत से नफ़रत, स्वार्थ और निस्वार्थ भावनाओं का द्वन्द है। इस में कोमल प्रेम के सुखद पल हैं तो भूख और ग़रीबी की यातना भी। ये आजकल के मध्यवर्ग की, ठीक मार्ग की खोज की कहानी है, जिस पर चलने से उनका जीवन अमर हों जाये-ये जीवन की अपनी ही कहानी है।
(From the official press booklet)